मन रोने लगा है फिर एक बार-
याद तू आने लगा है.
काश,तू होता यहाँ
विचरण करता इस धरा पर-
अवलोकित होते तुझे -पाषाण ह्रदय !
बापू-राम राज्य की तेरी कल्पना
धूमिल हो गई है आज,
कलुषित है ये देश- विकृत है ये धरा,
लहू के सागर, बहते हैं अब!
बेटियां-नुचती हैं यहाँ -जब,
पूजें हम तुझे कैसे, कब?
तू ही बता -हम हैं कहाँ!
आ देख, फिर से एकबार
जिस धरा पर गिरे,तेरे लहू
-न्योछावर होने की खातिर,
उसी धरा पर-आज यहाँ,
कालिमा बिखरी पड़ी!
लहू भी तेरा,
धूमिल पड गया-
इस 'कलुषित कालिमा' से
आ जा फिर एक बार-
बापू-ये दिल जाने क्यों आज,
ज़ार-ज़ार होने लगा है,
याद मे तेरी, रोने लगा है !
8 comments:
बापू! मै भारत का वासी,तेरी निशानी ढूंढ रहा हूँ.
बापू!मै तेरे सिद्धान्त,दर्शन,सद्विचार को ढूंढ रहा हूँ.
सत्य अहिंसा अपरिग्रह,यम नियमसब ढूंढ रहा हूँ.
बापू! तुझको तेरे देश में, दीपक लेकर ढूंढ रहा हूँ.
कहने को तुम कार्यालय में हो, न्यायालय में हो,
जेबमें हो,तुम वस्तु में हो,सभा में मंचस्थ भी हो,
कंठस्थ भी हो,हो तुम इतने निकट -सन्निकट.,
परन्तु बापू! सच बताना आचरण में तुम क्यों नहीं हो?
For detail see my blog. Thanks for too much impressive article.
गाँधी-जयंती पर सुन्दर प्रस्तुति....गाँधी बाबा की जय हो.
रूप साहब.. बहुत सुंदर और समीचीन कविता लिखी है ... कुछ पंक्तिया तो बेहतरीन हैं...
"लहू भी तेरा, धूमिल पड गया-इस 'कलुषित कालिमा' सेआ जा फिर एक बार-बापू-ये दिल जाने क्यों आज,ज़ार-ज़ार होने लगा है,याद मे तेरी, रोने लगा है !"
शुभकामना सहित...
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
तुम मांसहीन, तुम रक्त हीन, हे अस्थिशेष! तुम अस्थिहीऩ,
तुम शुद्ध बुद्ध आत्मा केवल, हे चिर पुरान हे चिर नवीन!
तुम पूर्ण इकाई जीवन की, जिसमें असार भव-शून्य लीन,
आधार अमर, होगी जिस पर, भावी संस्कृति समासीन।
कोटि-कोटि नमन बापू, ‘मनोज’ पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
Mera ghar vill.& post. Bharsar, Ps. Dubhar Distt. Ballia hai. Kisi sahyog / sewa ki aawasykta ho to bataiyrga. Thanks. See u again.
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मन के उद्गारों को बखूबी लिखा है
achchhi prastuti
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
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