कटी पतंग-
दूर तक हवा के संग,
उड़ती चली जाती है -
लहराती डोर ,
हवा के तेज थपेड़ों के बीच!
ना जाने कितनी उमंगें,कितने अरमां -
लेकर उडी थी यह,
वादा किया था,डोर के संग
साथ नहीं छूटेगा
आसमां के दूसरे छोर तक!
छोड़ा साथ-
मंजिल का नहीं है,
कोई ठिकाना
दूर तलक-
एक अंतहीन यात्रा
अनुभवहीन!
बस, थपेड़े ही बन कर
रह गयी-नियति.
क्या,कभी चाहा था- परिणाम ऐसा
पर कौन है-जिसे कारण कहा जाय
तो आओ-फिर उड़ें,
शायद अबकी बार,
आसमां के दूसरे छोर तक
हो अपना साथ!
3 comments:
बेहद ख़ूबसूरत और उम्दा
तो आओ-फिर उड़ें,
शायद अबकी बार,
आसमां के दूसरे छोर तक
हो अपना साथ!
Let's hope ...
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पतंग, डोर, हवा अऊर आकास के मध्यम से संबंधों का बहुत सुंदर ब्याख्या किए हैं आप...सबसे सुंदर लगता है कि कबिता एक आसा पर समाप्त होता है!!
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