उस्तादजी के ब्लॉग पर देखा चित्र इस कविता का जनक है , इसलिए यह कविता भी समर्पित है उस्ताद जी को !
पैर से पंचर बनाते हुए
देखे नहीं होंगे
किसी ने
निशान !
जो उसके पैरों के साथ ही उभर आये होंगे
उसके दिल पर!
तल्खियों मे डूबी चीख किसी ने नहीं सुनी होगी
उसके मन की!
इज्ज़त की दो रोटी कमा ले ,
यह सोचकर -
कितने दर्द सहे होंगे उसने !
हिकारत से देखा होगा कितनो ने
शायद कुछ ऐसे भी होंगे ,
जिन्हें सामयिक टिपण्णी नुमा दया आई होगी !
कुछ वे भी होंगे ,
जिन्होंने एकाध रूपये के लिए -
चिख-चिख मचाई होगी
पर जो तन्मयता
जो इमानदारी
जो परिश्रम
उसकी पेशानी की
बूंदों को
आयी होंगी .
क्या जवाब दे पाएंगे वे
जो सवारी करते हुए
ठंडी बयार पर
आहें भरते होंगे !
1 comment:
रूप जी! उस व्यक्ति ने लाखों कि इंवेस्ट्मेण्ट कर रखी है उस पंक्चर की दुकान पर. टॉल्स्टॉय के पास एक आदमी कर्ज़ माँगने आया तो उन्होंने कहा कि मेरे एक दोस्त के पास चले जाओ, वो तुम्हारे पैरोंके बदले लाखों धन दे देगा. या फिर हाथों के बदले कुछ और लाख. जब वो आदमीभड़क गया तो वे बोले, लाखोंकी दौलत साथ लिये घूमता है और दया की भीख माँगता है.
रूप जि आपकी कविता ने उसी संवेदना को बहुत ही भावप्रवणता से उभारा है.. बहुत सुंदर!
Post a Comment