क्या लिक्खूं!
तुम याद आती हो !
या कि याद आती है
उस घर की,
जहाँ तुम पोंछती होंगी
दीवार से सटे
ताक़ पर लगाई हुई
मेरी और तुम्हारी तस्वीर!
पूजा घर मे तुम्हारा
बाती बनाना !
आरती की थाल-सुबह-शाम
सजाकर -
प्रज्जवलित लौ से घर को
प्रकाशित करना !
इश्वर से प्रार्थना करते हुए
परिवार, बच्चों के
कुशल-मंगल की ताकीद करना !
या फिर -
घर से बाहर निकलते
मंदिर मे माथा टेकना !
रसोई मे घुसकर
हर-एक की फ़रमाईशों पर
कुर्बान होना !
कभी खुद का नहीं -
पर बेटे-बेटियों के लिए
आश्वाशन मांगना !
क्या लिखूं
तुम याद आती हो !
1 comment:
एक गृहलक्ष्मी की याद बसी रहे हृदय में यही उसके प्रति सच्चा सम्मान है... और आपने उसे भरपूर चित्रित किया है!!
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