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Saturday, December 4, 2010

बहुत दिनों के बाद एक कविता पोस्ट करना चाहता हूँ. कविता क्या है , एक पुरानी याद है , जो घर के कोने मे दीवार से लिपटी पड़ी है. मै इसे हटाना भी नहीं चाहता . चाहता हूँ अपनी याद शेयर करुं.........................आपके साथ बाँट लूँ इसे.

खूंटी पर टंगा-
बाबूजी का कोट
एक सोंधी खुशबू
एक प्यार भरी डांट !
भविष्य को सचेत करती एक 
सलाह !
कितने सपने,कितने अरमानो
कितनी बेफिक्री, कितना सहयोग 
उन्मुक्त विचारों ,भावनाओं से 
उल्लासित मन !
नहीं जाना था तब
छूट जायेगा यह सब 
एक दिन !
'बाबूजी' बन जाऊंगा खुद मैं
नहीं जाना था तब 
उस गंभीर चेहरे का दर्द
नहीं सोचा था !
इतनी चिंताएं, इतनी विवशताएँ.
अब समझा है, आज जाना है 
उस कोट की बनावट मे
कितने रेशे- कितने सूत 
गूंथे हैं!
अब जाना है मैंने 
उस कोट की कीमत !

3 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

भावनाओं से भरी रचना ....यही यादें हैं जो जीवनपर्यंत चलती हैं ....

vandana gupta said...

कोट के माध्यम से एक पिता के दायित्वों , उसकी पीडा और उसके स्नेह का बेहद उम्दा चित्रण किया है और इंसान को इसका आभास तभी होता है जब वो खुद उस दौर से गुजरता है।

अनुपमा पाठक said...

bahut bhaavpoorna rachna!