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Sunday, December 5, 2010

क्या लिक्खूं!
तुम याद आती हो !
या कि याद आती है 
उस घर की,
जहाँ तुम पोंछती होंगी
दीवार से सटे 
ताक़ पर लगाई हुई 
मेरी और तुम्हारी तस्वीर!
पूजा घर मे तुम्हारा 
बाती बनाना !
आरती की थाल-सुबह-शाम
सजाकर -
प्रज्जवलित लौ से घर को
प्रकाशित करना !
इश्वर से प्रार्थना करते हुए 
परिवार, बच्चों के
कुशल-मंगल की ताकीद करना !
या फिर -
घर से बाहर निकलते 
मंदिर मे माथा टेकना !
रसोई मे घुसकर 
हर-एक की फ़रमाईशों  पर
कुर्बान होना !
कभी खुद का नहीं -
पर बेटे-बेटियों के लिए
आश्वाशन मांगना !
क्या लिखूं
तुम याद आती हो !

1 comment:

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

एक गृहलक्ष्मी की याद बसी रहे हृदय में यही उसके प्रति सच्चा सम्मान है... और आपने उसे भरपूर चित्रित किया है!!