चलो, एक नया गीत बुने !
ख्वाबों के महल सजाएँ
रोशन जीवन महकाएं
जगमग हो घर -आँगन अपना
आशाओं के राग गुनें
चलो,एक नया गीत बुने !
तुम चंदा, मैं चांदनी
तुम ख़ुशबू ,मैं रागिनी
तुम,मीठी झंकार
और मैं, ताल और धुनें
चलो एक नया गीत बुने !
(समयाभाव... !जारी रहेगा ...)
3 comments:
तुम,मीठी झंकार
और मैं, ताल और धुनें
चलो एक नया गीत बुने
ek anthin pyar ka geet bunte rahiye
अच्छी उपमाएँ हैं.
तुम चंदा, मैं चांदनी
तुम ख़ुशबू ,मैं रागिनी
तुम,मीठी झंकार
और मैं, ताल और धुनें
चलो एक नया गीत बुने !
- विजय तिवारी 'किसलय'
हिन्दी साहित्य संगम जबलपुर
चलो,एक नया गीत बुने !
तुम चंदा, मैं चांदनी
तुम ख़ुशबू ,मैं रागिनी..
Nice creation !
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