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Tuesday, November 9, 2010

चलो, एक नया गीत बुने !
ख्वाबों के महल सजाएँ
रोशन जीवन महकाएं
जगमग हो घर -आँगन अपना
आशाओं के राग गुनें
चलो,एक नया गीत बुने !
तुम चंदा, मैं चांदनी
तुम ख़ुशबू ,मैं रागिनी
तुम,मीठी झंकार
और मैं, ताल और धुनें
चलो एक नया गीत बुने ! 
(समयाभाव... !जारी रहेगा ...)

3 comments:

Sunil Kumar said...

तुम,मीठी झंकार
और मैं, ताल और धुनें
चलो एक नया गीत बुने

ek anthin pyar ka geet bunte rahiye

विजय तिवारी " किसलय " said...

अच्छी उपमाएँ हैं.

तुम चंदा, मैं चांदनी
तुम ख़ुशबू ,मैं रागिनी
तुम,मीठी झंकार
और मैं, ताल और धुनें
चलो एक नया गीत बुने !
- विजय तिवारी 'किसलय'
हिन्दी साहित्य संगम जबलपुर

ZEAL said...

चलो,एक नया गीत बुने !
तुम चंदा, मैं चांदनी
तुम ख़ुशबू ,मैं रागिनी..

Nice creation !

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