कुछ इल्म हुआ यूँ मुहब्बत के बाद, दामन मे दिल के, एक गाँठ लगी!
सीमाएं भी इंसीन को ही तोड़नी है...उन्मुक्त गगन में उड़िए....जरूर उड़िए
रूप बाबू! इंसान ने सीमाएँ जानी ही कब हैं. पंछियों की तरह उडने का ख्वाब और मछलियों की तरह सागर के गर्भ में भ्रमण करना, सब सम्भव कर दिया है इंसान ने.. कोई बेड़ियाँ नहीं बनी ऐसी जो इंसान काट न पाए..
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सीमाएं भी इंसीन को ही तोड़नी है...उन्मुक्त गगन में उड़िए....जरूर उड़िए
रूप बाबू! इंसान ने सीमाएँ जानी ही कब हैं. पंछियों की तरह उडने का ख्वाब और मछलियों की तरह सागर के गर्भ में भ्रमण करना, सब सम्भव कर दिया है इंसान ने.. कोई बेड़ियाँ नहीं बनी ऐसी जो इंसान काट न पाए..
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