मन की बेचैनी का ज़िक्रे -बयाँ अब क्या करें
तुमसे मिलना भी चाहे है , और दूर जाना भी
तुम पास हो तो भूल जाते हैं हम ,
कहनी होती हैं न जाने कितनी ही बातें .
तुम ,जब पास नही होते , तनहाइयों में
सपनो के महल बनाते हैं .
बिठाते हैं तुम्हे अपने मन - मंदिर में
पूजा के फूल तुम्हे चढाते हैं !
शायद पहुँच नहीं पाती , श्रद्धा तुम तक
तभी तो , आज भी तुम्हे पा ना सके हैं हम
हर सुबह एक नयी उमंग लेकर जगते हैं
और शाम तलक , दिए बुझ जाते हैं !
क्या , कुछ ऐसा ही हाल तुम्हारा भी है
लोग कहते हैं , दिल को दिल से राह होती है
फिर क्यों नहीं ख्वाब ये सच होते
बागों में फूल मुस्काते हैं !
जाने कैसा है ये आलम भी
दीवार पर आरी -तिरछी लकीरों से
तस्वीर तुम्हरी बनाते हैं
तस्वीरों से बातें करते हैं ,
तुमसे नहीं कह पाते हैं
और शाम तलक , दिए बुझ जाते हैं !
1 comment:
हर दिन मन नया में द्वन्द ...... सुंदर रचना
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