बारहा टूटे हैं सपने !
बारहा ठेस लगी है दिल पर ,
ना-समझ फिर भी बाज़ नहीं आता .
उनसे मिलने की ख्वाहिशें लिए बैठा है,
जो हर बार ही फेर लेते हैं नज़रें
कैसे समझाएं , रास्तें अलग है ,फिर भी
खुद को ही चोटिल किये बैठा है !
उम्मीदें हर रोज़ बदती जाती हैं
तम्मनाओं की उम्र घटती नहीं लेकिन ,
ख्वाबों के काफिलों से बाहर नहीं आता
इकरार के इज़हार किये बैठा है .
बारहा टूटे हैं सपने !
2 comments:
पीड़ा को प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति मिली है आपके शब्दों में..
गहन अभिव्यक्ति...
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