सच है ,
कभी किसी को मुक्कम्मल जहाँ नहीं मिलता ,
चाहता है ये दिल , जब तुम पास होते,
खुबसूरत रेशमी एहसास के साये में
जब हम अपनी कहते , तुम्हारी सुनते
हवाएं जब मदहोश कर रही होंती
तुम्हारे थरथराते होंठ , जब अठखेलियाँ कर रहे होते
तल्खियाँ ज़िन्दगी की बेज़ार होंती.
तब, तब केवल तुम और मैं.....!
रात तो कट जाती है किसी तरह
पर दिन , उफ़, दिवा-स्वप्न भी ,
किस कदर कमज़ोर बनाये रहता है .
चाहता हूँ , भूल जाऊं तुम्हें,
पर उतने ही याद आते हो तुम .
क्या , तुम्हारे साथ भी ऐसा ही कुछ है !
पर नहीं , तुम्हारी बातें !
कहते कुछ और हो , पर
अर्थ कुछ और ही होता है उनका !
चलो , भूल जायें ,क्या हैं हम,
कौन सी जिम्मेदारियां हैं हमारी .
हमें तो बस तुम्हारा साथ अच्छा लगता है .
क्या मुमकिन है तुम्हारे लिए भी
कुछ ऐसा ही !
सीमाएं भी , किस कदर , तबाह
करतीं हैं ,
तुमसे मिलकर ही समझ पाया हूँ .
ये दिल भी , कभी मेरी सुनता ही नहीं ,
दिमाग समझाने की कोशिश में अनवरत
लगा रहता है !
इसलिए ही शायद ,
कभी किसी को मुक्कम्मल जहाँ नहीं मिलता !
3 comments:
बहुत सुंदर .... कोई न कोई कमी तो खलती ही है.....
Thanx Monika ji !
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