रंग लाई है आज मेहनत तुम्हारी ,
चढ़ी फिर से नई जवानी है
भूल पायेगा नहीं इसको हिन्दोस्तां ,
आज ऐसी लिखी कहानी है.
दर्द कभी झलका नहीं ,चेहरे से.
नूर हुआ न कम तुम्हारा
आज पाया है जिसे ,
केवल बस केवल है तुम्हारा
आंकड़े लोग बनाते रहेंगे ,
कहेंगे हम भी शामिल थे
पर जो कुछ भी मिला है आज हमे ,
इसके सूत्रधार तुम मुकामिल थे.
गायेंगे राग तुम्हारा, नज़्म तुम्हारा सुनायेंगे .
भ्रष्टाचारी काँप उठते थे, भावी पीढ़ी को बताएँगे .
अन्ना , तुम्हे गाँधी या नेहरु क्यों पुकारे हम !
तुम अन्ना ही ठीक लगते हो.
आज, जिसकी सबसे ज्यादा ज़रूरत है
तुम, ऐसी एक लीक लगते हो.
छोड़ कर हमे जाना नहीं
ज्योति कभी बुझाना नहीं
यही दुआ है, मशाल जलती रहे .
खुशियाँ जीवन की पलती रहें .
उनकी, जिन्हें न सहारा है !
बस जपते नाम तुम्हारा हैं .
3 comments:
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच पर भी की गई है! यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
बहुत खूब रूप बाबू!!
बहुत बढ़िया प्रस्तुति...
सादर...
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