आज पास आने से भी कतराता है
क्यूँ होता है ऐसा , कोई बताये हमें !
क्यूँ ये प्यार समय में सिमट जाता है !
क्यूँ हसरतें रह जातीं हैं अधूरी
क्यों दिल ये तनहा हो जाता है !
तमन्नाएँ , आरज़ूओं की ख़लिश बढ़ातीं हैं
क्यूँ कोई गूंथ के बिखर जाता है !
यारब तूने गढ़ें हैं खेल ये कैसे ?
रचा ये कैसा तमाशा है
जब प्यार मंजिल का एहसास पाने लगता है
दिल ये टूट के बिखर जाता है !
3 comments:
क्यूँ कोई गूंथ के बिखर जाता है !
सुंदर ...बहुत सुंदर रचना
खूबसूरती से लिखे हैं मन के भाव
Love is like that only . It must be one way , without expectations to remain unhurt . Love is gust giving and giving and giving ....
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