माथा प्यारे टामी का
निकल पड़े हैं धूप का सेवन करने
रसूखदार शर्मा जी !
दुलराते ,पुचकारते ,
कभी कांधे पे, कभी पीठ पर हाथ फेरते
टामी को ' फरागत' कराने का प्रयत्न करते शर्मा जी
लीन हैं , और शायद आत्मतुष्ट भी
टामी के बदन से आ रही है भीनी भीनी खुशबू
उस स्प्रे की, जो उनकी 'भागवान' ने छिड़का है
पास ही खड़ा हसरत से देखता है 'टेंगरा'
कांपता है ठंड से. थोड़ी धूप लेने का प्रयत्न करते हुए
लग जाता है शर्मा जी के दीवाल से.
शायद थोड़ी गर्माहट नसीब हो जाये उसे भी .
आगबबूला हो जाते हैं शर्मा जी उसे देखकर
भूंकतें हैं दोनों निरीह टेंगरा पर.
दुबक जाता है
और सरपट दौड़ लगाता है टेंगरा.
टामी कुछ दूर तक करता है पीछा
शर्मा जी पुचकारते हैं
लौट आता है टामी
और मेरी नज़र अनायास
शर्माजी के गेट पर पड जाती है
एक बोर्ड टंगा है
लाल अक्षरों मे शब्द मुह चिढाते हैं
गरीबों के मसीहा, समाज सेवी
ए के शर्मा !
3 comments:
एक सच्चे समाजसेवी का शब्दचित्र.. वे जिस समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं उनकी ही तो सेवा कर रहे थे बेचारे!!
What a nice sarcastic comment Salil ji. Thank you for motivating me.
बेहतरीन कटाक्ष.....
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