आज दिवस है उन लोगों का !
जिन्हें न उनका भान है .
सारा दिन तपती धरती पर
मिला कहाँ विश्राम है !
तुम कहते हो बदलो किस्मत !
तुम्ही ठोकरें देते हो .
जब भी माँगा है हक अपना .
विष-वमन ,तुम्ही कर देते हो.
तुमसे अच्छा तो विषधर है ,
मेरा सहभागी रहता है
जब तक न उसे छेड़ा जाये
साथी ही साथी रहता है !
सारे सपने साकार किये
तुम पर हमने उपकार किये
पर कैसे इन्सां हो तुम महलों के
हम पर बस तुम प्रहार किये !
कब तक कुचलोगे , रौंदोगे
कब तक हम सबको सौदोगे
एक दिन ऐसा भी आएगा
जमीर हमारा जाग जायेगा
और जिन्हें पूजते हो महलों में
वो भी हमसे घबराएगा .
अब तक वो रहा तुम्हारे दर
तुम्हे छोड़ के जायेगा !
इम्तहान होगा फिर ख़त्म
औ भगवन हम तक भी आएगा !
4 comments:
मर्मस्पर्शी कविता आज के दिन के लिए.. धरती के भगवान को नमन!!
बहुत सुन्दर और भावमयी रचना....
सारे सपने साकार किये
तुम पर हमने उपकार किये
पर कैसे इन्सां हो तुम महलों के
हम पर बस तुम प्रहार किये !
कब तक कुचलोगे , रौंदोगे
कब तक हम सबको सौदोगे ...
रूप जी भावुक कर दिया इस प्रस्तुति ने । मजदूर नहीं जानते की आज श्रम दिवस है ...यही सबसे बड़ा दुर्भाग्य है।
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कहीं अपनी छाप छोड़ गई यह रचना...
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