मेरे दरवाजे कोयल बोलती है !
सुबह का सूरज भी
जब अलसाया रहता है
माँ के आँचल से मुंह ढांपे
धीरे-धीरे आँखें खोलता है
अख़बार की मुट्ठी बाँधे जब ,
अमराइयों में बयार डोलती है.
मेरे दरवाजे कोयल बोलती है !
कुहू-कुहू की लयात्मक ध्वनि ,
मुझे मदहोश बना देती है
ख़ामोशी जब खामोश बना देती है
दुलकी चालों से चलती है
पापा की आँखों में
पूत के भविष्य की चमक
सुबह ,जब सूर्य की तपिश का
भार तोलती है
मेरे दरवाजे कोयल बोलती है !
दूर किसी आंगन के मंदिर से
घंटियों की मधुर रुनझुन
पानी की टोंटी से बहती धार पर
किसी रामनामे की धुन
कहीं अलसाये चूल्हे से
निकाली जाती राख की सोंधी
खुशबू !
मन-मंदिर के नए द्वार खोलती है
मेरे दरवाजे कोयल बोलती है !
11 comments:
मन-मंदिर के नए द्वार खोलती है
मेरे दरवाजे कोयल बोलती है !
बहुत सुंदर ......
प्रातः काल और कोयल की कुक का सुंदर चित्रण |
बधाई |
आशा
मन-मंदिर के नए द्वार खोलती है
मेरे दरवाजे कोयल बोलती है !
चाहे किसी भी तरह से खुले यह मन मंदिर के द्वार सभी के लिए खुलने चाहिए वर्ना ..इस संसार की हालत बहुत नाजुक हो गयी है और ज्यादा झगडे मन मंदिर के भेद के कारण हैं ....आपका शुक्रिया समरसता भरी इस कविता के लिए ..!
जब सूर्य की तपिश का भार तोलती है
मेरे दरवाजे कोयल बोलती है !
बहुत सुन्दर...बहुत भावपूर्ण...
वाह वाह ……………प्रात:काल का मनोहारी चित्रण कर दिया।
मौसम के अनुकूल..
दुलकी चालों से चलती है
पापा की आँखों में
पूत के भविष्य की चमक
सुबह ,जब सूर्य की तपिश का
भार तोलती है
मेरे दरवाजे कोयल बोलती है !
-क्या बात है...कोयल की कुहक सुनाई दी हर पंक्ति में...सुन्दर!!
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कुहू-कुहू की लयात्मक ध्वनि ,
मुझे मदहोश बना देती है
ख़ामोशी जब खामोश बना देती है ...
वाह रूप जी !
बहुत ही सुन्दर अंदाज़ में अभिव्यक्त किया है कोयल की कूक को और ख़ामोशी की मदहोशी ....वाह ! क्या कहें ?....बेहतरीन !
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बहुत भाग्यवान हैं जो आपके दरवाजे कोयल बोलती है.कविता पढ़ कर मन प्रसन्न हो गया.
घुघूती बासूती
आपलोगों का आना एक सुखद संयोंग है , और मेरे लिए प्रेरणाश्रोत भी . धन्यवाद .
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