अकेलेपन की त्रासदी ,
उस बुढ़िया की आँखों से
झाँक रही थी !
मेरे घर आयी थी वो -
काम मांगने !
बेटा , झाड़ू,पोछा कर दूँगी
बर्तन भी धो दूंगी
मेरा कोई नहीं है !
कृशकाय, कमजोर देह को ढांपे
एक झिलंगी साड़ी में उसे देखकर
पूछा मैंने -
घर में कौन - कौन है !
दो बेटियां , एक बेटा ,बहू
और दो नाती -पोते
'फिर भी काम ढूँढ रही हो '!
पूछा मैंने .
आँख भर आई उसकी
रोते हुए कहा -
बहू खाने को नही देती
मारती है !
'बेटा कुछ नही कहता !'
फिर पूछा मैंने !
"चुप" कुछ नही कहा उसने .
सोचता रह गया मैं
क्या हम आदमजात हैं !
8 comments:
मार्मिक अनुभूति।
मार्मिक .... हर संवेदनशील इन्सान सोचता है....क्या है आदमजात
sannata sa pasar gaya .... is rachna ko apne parichay tasweer aur blog link ke saath rasprabha@gmail.com per bhejiye vatvriksh ke liye
बहुत मार्मिक ...ऐसा भी होता है ...
रूप जी!
एक गाँव में पोस्टेड था मैं.सड़क किनारे चाय पी रहा था,तो दूसरी तरफ जूठे बर्तन मांजने वाली एक बुढिया को दिखाकर मेरे साथी ने कहा, जानते हैं सर, ये फलाने की माँ है.
रूप जी वो फलाने एक केन्द्रीय मंत्री थे. आपकी कविता वाली बुढिया के दर्शन कर चुका हूँ मैं!!
आदमजात कहलाने के हकदार तो नही है हम्………………एक बेहद मार्मिक और सशक्त चित्रण्।
बहुत अच्छा लगा आपके ब्लॉग पे आने से बहुत रोचक है आपका ब्लॉग बस इसी तह लिखते रहिये येही दुआ है मेरी इश्वर से
आपके पास तो साया की बहुत कमी होगी पर मैं आप से गुजारिश करता हु की आप मेरे ब्लॉग पे भी पधारे
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
इसी विषक कभी एक दिल से कहानी लिखी थी. जब कभी समय मिले, तो पढ़ियेगा:
http://udantashtari.blogspot.com/2007/11/blog-post.html
-मन द्रवित हो गया,.
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