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Tuesday, April 19, 2011

मुक्ति !


स्त्री मुक्ति पर की जाती हैं बहसें 
बातें, संगोष्ठियाँ और न जाने क्या -क्या !
अक्सर औरतों को सुना होगा आपने ,
और 
कहते हैं विद्वजन 
महिला मुक्ति हेतु -
निवृत करो रसोई घर से उन्हें -
नजर आते नही -
बिगड़ते मासूम ,
बिखरे ड्राइंग रूम  !
फास्ट और फ्रोजन फ़ूड हैं अब -
संस्कृति का हिस्सा 
'पॉप' तुम आउट डेटेड हो 
है अब रोज़ का किस्सा  !

इक्कीसवीं सदी के राजकुमार-राजकुमारियां 
अब होंको-पोंको -पो करने लगे हैं 
'एस के पी' ही 
अनुभव  से सराबोर होने लगे हैं !
बस वर्तमान ही बचा है अब ,
आँखें मिचमिचाने को 
चकाचौंध करती रोशनियों में 
दूर का देखा , पास का अनदेखा 
और रात को दिन , दिन को रात
में बदल जाने को !
भविष्य व भूत की बातें क्यों करते हो 
बस आज को जियो 
प्रेम के रस पियो !

6 comments:

रश्मि प्रभा... said...

भविष्य व भूत की बातें क्यों करते हो
बस आज को जियो
प्रेम के रस पियो !
sahi baat

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

दूर का देखा , पास का अनदेखा
और रात को दिन , दिन को रात
में बदल जाने को !
भविष्य व भूत की बातें क्यों करते हो
बस आज को जियो

आज के माहौल का सटीक चित्रण ..

ZEAL said...

दुर्दशा है बच्चों की , संभालना तो माँ बाप की ही जिम्मेदारी है। चाहे अपनी मुक्ति के लिए लडें ,चाहें संतान का भविष्य संवार लें।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

दूर का देखा , पास का अनदेखा

बहुत ही बढ़िया ...क्या पंक्ति रची है आपने.... जैसे सब कुछ समेट लिया

शोभा said...

स्त्री मुक्ति के लिए उन्हें रसोई से निवृत करने की जरुरत नहीं है बल्कि उनके काम को सम्मान जनक दर्जा देने की जरुरत है.

Udan Tashtari said...

भविष्य व भूत की बातें क्यों करते हो
बस आज को जियो
प्रेम के रस पियो !


-इतना ही समझ जायें...तो निदान हो!!