आज दिवस है उन लोगों का !
जिन्हें न उनका भान है .
सारा दिन तपती धरती पर
मिला कहाँ विश्राम है !
तुम कहते हो बदलो किस्मत !
तुम्ही ठोकरें देते हो .
जब भी माँगा है हक अपना .
विष-वमन ,तुम्ही कर देते हो.
तुमसे अच्छा तो विषधर है ,
मेरा सहभागी रहता है
जब तक न उसे छेड़ा जाये
साथी ही साथी रहता है !
सारे सपने साकार किये
तुम पर हमने उपकार किये
पर कैसे इन्सां हो तुम महलों के
हम पर बस तुम प्रहार किये !
कब तक कुचलोगे , रौंदोगे
कब तक हम सबको सौदोगे
एक दिन ऐसा भी आएगा
जमीर हमारा जाग जायेगा
और जिन्हें पूजते हो महलों में
वो भी हमसे घबराएगा .
अब तक वो रहा तुम्हारे दर
तुम्हे छोड़ के जायेगा !
इम्तहान होगा फिर ख़त्म
औ भगवन हम तक भी आएगा !