करवटें लेकर तमन्नाएँ दिल की -
कहना चाहतीं हैं.
कुछ ऐसी ही बातें-
बयां ,
करने को बेताब है-
गुज़रे पलों की दास्ताँ .
लब,
लब,
थरथरा कर रह जाते हैं,
जो यादें हम तुम तक-
पहुंचाना चाहते हैं.
कहीं तुम इन्हें,
हमारी बेड़ियाँ न बना दो ,
रुसवां नहीं हो सकते,
पर रोकें भी तो कैसे......!
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