Wednesday, August 18, 2010
Samiksha
पीपली (लाइव) देखकर लगा, अभी भी सिनेमा समज का दर्पण हो सकता है, वैसे तो इस फिल्म की theme कोई बहुत नयी नहीं है, क्योंकि किसानो कि समस्या पर पहले भी बहुत कुछ दिखाया जा चुका है, बधाई के काबिल हैं , आमिर खान और अनुषा रिज़वी, जिन्होंने इसके चित्रण पर विशेष ध्यान दिया है, नत्था का चरित्र और बुधिया कि चतुराई!(यदि इसे कुछ इस तरह भी समझा जाय !) तो फिल्म कि जान है , पर सारे चरित्रों ने अपना काम बखूबी किया है, आज के समाज मे अपनी रोटी सेंकना क्या होता है, इसकी समझ यदि दर्शक मे है तो यह समझ सकता है, कि न केवल नेता बल्कि मीडिया, और सबसे बड़ी बात- परिवार मे भी ,किस प्रकार स्वार्थ समाहित है, इसका चित्रण इस फिल्म मे हुआ है. मीडिया ने नत्था के मॉल पर जो टिप्पड़ी कि है, वह तो मीडिया के commercialisation की पराकाष्ठा है . वहीँ फिल्म मे "होरी महतो " जैसे भी किसान हैं , जो हड्डियों का ढांचा होते हुए भी न तो मीडिया की नजर मे हैं और न ही नेताओं के पार्टी- उत्थान का कारण..............................
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