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Sunday, August 8, 2010

अब बरसो ना......

अब बरसो ना.......!
नैन भी जड़ हो गए हैं
राह तककर तुम्हारी
क्यों नहीं सुनते प्रभु!
तुम ये मलिन (कठिन) विपदा हमारी ।
हाड़ के ये चाम भी अब -
झूलने लगे हैं,
तुम्हारी तपिश से।
न खेलो आँख-मिचौली
अब तो आओ ! अश्रुपूरित ,
नयन भी अब ,
कोसने लगे हैं तुम्हे।
तुम न यूँ मुख मोड़ लो
नयन के ये द्वार खोलो
ऐसा भी तो नहीं है कि
सक्षम नहीं हैं _हम,
या पुकार ही हमारी -
तुम तक है न पहुँच पाती।
पर जब तुम_
कहे जाते हो _ बंदापरवर !
तो ,क्या नहीं चाहिए तुम्हे_
देखनी-अपने ही बन्दों कि दुर्दशा !
अब तो न यूँ तड़पाओ,
अस्तित्व ही बाकी कहाँ है ,
अब हमारी।
ठोकरों ने ज़माने कि-
झुलसाया है,
अब तुम भी तो न झुलसाओ
आओ न _____
नेह बरसाओ।


2 comments:

Udan Tashtari said...

बढ़िया.

एक निवेदन:

कृपया वर्ड-वेरिफिकेशन हटा लीजिये

वर्ड वेरीफिकेशन हटाने के लिए:

डैशबोर्ड>सेटिंग्स>कमेन्टस>Show word verification for comments?>
इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें..बस हो गया..जितना सरल है इसे हटाना, उतना ही मुश्किल-इसे भरना!! यकीन मानिये.

रूप said...

aapka niwedan sweekar liya gaya hai, dhanyawad.. padte rahiye.........