आज फिर से लौट आया हूँ तुम्हारी देहरी पर ,
उल्लास वही पुराना फिर से लौट आया है
उम्मीद है , स्वीकार लोगे तुम मुझे
जैसा भी हूँ , हूँ तो आखिर तुम्हारा ही
बंदिशें तोड़ डालीं हैं आज हमने ,
गुबार सारे धो डाले हैं .
अब तो नए आसमान बनाऊंगा
उचाईयों की डोर को दूंगा एक मांझा नया
गुज़ारिश बस तुमसे है इतनी
स्वीकार लो आज फिर तुम मुझे !
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