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Thursday, April 11, 2013

स्वीकार लो !

आज फिर से लौट आया हूँ तुम्हारी देहरी पर ,
 उल्लास वही पुराना फिर से लौट आया है 
उम्मीद है , स्वीकार लोगे तुम मुझे 
जैसा भी हूँ , हूँ तो आखिर तुम्हारा ही 
बंदिशें तोड़ डालीं हैं आज हमने ,
गुबार सारे धो डाले हैं .
अब तो नए आसमान  बनाऊंगा 
उचाईयों की डोर को दूंगा एक मांझा नया 
गुज़ारिश बस तुमसे है इतनी 
स्वीकार लो आज फिर तुम मुझे !

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