मदहोश हवाओं में यूँ न फैलाओ आँचल
बादलों के बरसने का अंदेशा हो जायेगा !
रुखसार की लाली , इन्द्रधनुष का देती है गुमां
बेहोश जवानी को मचलने का अरमां हो जायेगा !
गुनगुनाती वादियाँ हैं , महकती है ये फ़िज़ा
यूँ न इठलाओ , धरा को भी बहारा-जश्न हो जायेगा !
कायनात रंग बदलने को लगती है आतुर
ज़ुल्फे -इकरार को भी बयार का गुमां हो जायेगा !
4 comments:
सुन्दर भावाव्यक्ति।
बहुत सुंदर ...
क्या बात है.... लिखते थे कभी ख्वाब में दिल को तरख्त समक्ष कर... बहुत खूब लिखा है...
कभी हमारे ब्लॉग पर अपना दस्तखत करे...
:)
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