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Wednesday, September 1, 2010

कुसूर अपना

पूछेंगे तुमसे कुसूर अपना -गर कहीं मिलोगे तुम!
खामियां गिनवायेंगे हम अपनी,
हमें तो यही लगा था ,पूजा किये पत्थर की -
फूल चढ़ाये  गलत चौतरे पर.
काश, समझ पाए होते पहले हम-
तुम वो नहीं, जिसकी मूरत सजाई थी कभी हमने-
अपने मन-मंदिर मे .
पर- इतना तो यकीं है ,हमें भी,
कभी  न कभी  -याद हमारी तुम्हे भी आएगी,
तद्पोगे तुम  भी उन -लम्हातों को याद कर-
पछताओगे  तुम  भी कभी खो कर हमें.
तड़प रहेगी ,तुम्हे -हमारे लौट कर आने की 
पर लौट कर कभी-आ न पाओगे!




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