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Thursday, March 11, 2010

लौट आते वो दिन

किताब के सफे पर लिखे
इबारत की तरह
यादों की खिड़की से झांकते पल
वो सुबह का अलसाना
सो माँ का आँचल
फिर सुरमई सुबह मे
धूप के फिसलते कतरों का
करवट लेता तीखापन
सरसों के पीले लहराते फूल
सोंधी सी रसोई का धुआं
लौट आते वो दिन .............................!
खिड़की के पल्ले से ....
घुस आतें हैं वो पल
दिल के दरीचों से
झांकती _ वो भीनी सी
खुश्बुओ से भरी
स्नेहसिक्त आँखें
लौट जाता है मन _ ब़ार -ब़ार
उन खुले वीरानो की अन्ग्रैयों
को छूने को बेताब
तमन्नावों का आंसियाँ
तिनके- तिनके इकट्ठा करता है ________
ब़ार ब़ार थिरक कर
कह उठता है _मन !
मिल जाते वो पल _छिन!



Thursday, March 4, 2010

बहुत दिन हुए

बहुत दिन गए , कुच्छ लिख नहीं पाया लगता है जैसे एक ब्लाक , एक रुकावट सी हो गयी है, जाने भी दें इन रुकावटों से ही नक़ल कर निखरती है ज़िन्दगी .लहरे भी तो चट्टानों का सीना तोड़ कर अपने लिए रह बना लेती है.